रविवार, 5 जुलाई 2015

गायत्री मंत्र:


ओ३म् भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।


ओ३म् - सर्वरक्षक परमात्मा
भू: - प्राणों से प्रिय
र्भुवः - दु:ख विनाशक
स्व: - सुख स्वरूप है
तत् - उस
सवितु - प्रेरक
र्वरेण्यं - वरने योग्य
भर्गो - विशुद्ध ज्ञान स्वरूप
देवस्य - देव का
धीमहि - हम ध्यान करें
धियो - बुद्धियों को
यो - जो
न: - हमारी
प्रचोदयात् - शुभ कार्यों से प्रेरित करें

श्लोकार्थ:-

हम उस प्राण स्वरूप दु:ख विनाशक सुख स्वरूप श्रेष्ठ तेजस्वी और प्रेरक देव स्वरूप परमात्मा को अन्तरात्मा में धारण करें और वह हमारी बुद्धि की शुभ कार्यों में लगाएँ।

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